सप्ताह बाद वैलेंटाइन डे है। नरेश मन ही मन सोच रहा था इस साल पत्नी नेहा को क्या तोहफा दे जिससे वह खुश हो जाए। इसी उधेड़ बुन में वह दफ्तर से लौटकर भोजन पानी से निवृत होकर आराम कर ही रहा था कि नेहा बोल पड़ी: “वैलेंटाइन डे आ रहा है पॉकेट गर्म रखिएगा!” “क्या , वो क्यों?” “मुझे इस बार करीना स्टाइल वाला हार चाहिए।” “वो क्या होगा अब ?अरे ! हैं तो तुम्हारे पास कितने ही हार!” “हैं।सारे पुराने स्टाइल के हो गए हैं!” “तुम औरतों को ना, बस चाहिए तो चाहिए !” नरेश मन ही मन सोचने लगा कि यदि नेहा को गले का हार दूँ तो मां को क्या दूंगा? मां को कम से कम एक अंगूठी तो देनी ही होगी। आज तक हमेशा जो भी लाया हूं दोनों के लिए ही लाया हूं। तो अब ….।” मां हँस पड़ी, “अरे! बेटा, मुझे कुछ नहीं चाहिए! यह सब तो तुम नए लोगों के लिए है।” “अरे! बेटा वह तो ठीक है लेकिन मुझे कुछ नहीं चाहिए।” ” नेहा गले का हर मांग रही है।” तो नरेश ने पापा की तरफ इशारा करते हुए कहा: “मां के लिए भी एक अंगूठी ले आऊंगा।” “पापा फिर भी आप तो जानते हैं कि मैं आज तक कभी भी मां को छोड़कर कुछ नहीं लाता।” “बेटा यह सब कुछ ठीक है; लेकिन हमें इस उम्र में सिर्फ थोड़ी सी खुशी ! अपनी रोज मर्रा की जरूरतें पूरी हो जाएं वहीबहुत है। हमें सोने -चांदी से ज्यादा खुशी तुम्हारी खुशी से मिलेगी। लाना ही चाहते हो तो मां के लिए एक स्लीपवेल चप्पल ला देना, थोड़ी घिस गई है।..अब हमारी जो बची हुई जिंदगी है वह सुरक्षित एवं स्वस्थ रहें , खुशी से बीत जाए वहीं काफी है। जाओ! बेटा, बहू को लेकर ज्वेलरी शॉप चले जाओ! पैसे की जरूरत हो तो बताना बेटा।” मन में खुशी का फव्वारा लिए नरेश ने इतना ही कहा,”पापा… जरूर पापा…” नेहा अपना करीना हार पसंद कर मां के लिए कुछ देख ही रही थी कि नरेश बोला- “और क्या चाहिए तुम्हें!” “नहीं मुझे नहीं, मां के लिए देख रही थी।” “नेहा रहने दो , पापा ने कहा है, मां के लिए एक चप्पल ले आना।” “नरेश यह कैसे , मेरे लिए हार और मां के लिए चप्पल!”नेहा का मां के प्रति सम्मान देख नरेश भावुकता में गदगद हो गया। दोनों ने मिलकर प्यारी सी चप्पल खरीदी। नेहा तोहफा लेकर ज्यों घर पहुंची। नरेश ने मां को चप्पल दिखाईं। वहीं नेहा अपना हार मां को पहनाते हुए बोली,”मां यह आपके लिए।” ” बहुत सुंदर है बेटा!… “अरे जी ,एक फोटो तो क्लिक करो!”- माँ बोली,”अब हुआ ना असली वैलेंटाइन डे !” नेहा ने पापा के पास जाकर कहा, “अरे पापा, आप वहां क्यों ? यहां पास आईए ना.. ” कहते हुए नेहा पापा को अपने पास ले आई। मां के मुंह से सिर्फ एक ही वाक्य निकला- “यह हुआ ना मेरा छोटा सा संसार। ” चारों एक दूसरे के गले लग गए। खुशी की आभा लिए मुंह से सिर्फ यही दुआ निकली, “सदा खुश रहो बच्चों, स्वस्थ रहो….। |
*’ਲਿਖਾਰੀ’ ਵਿਚ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ਿਤ ਹੋਣ ਵਾਲੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਹੀ ਰਚਨਾਵਾਂ ਵਿਚ ਪ੍ਰਗਟਾਏ ਵਿਚਾਰਾਂ ਨਾਲ ‘ਲਿਖਾਰੀ’ ਦਾ ਸਹਿਮਤ ਹੋਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਨਹੀਂ। ਹਰ ਲਿਖਤ ਵਿਚ ਪ੍ਰਗਟਾਏ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਕੇਵਲ ‘ਰਚਨਾ’ ਦਾ ਕਰਤਾ ਹੋਵੇਗਾ। |
ਡੌਲੀ ਸ਼ਾਹ,
ਨੇੜੇ ਪੀਐਚਈ,
ਡਾਕਖਾਨਾ ਸੁਲਤਾਨੀ ਛੋਰਾ,
ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਹੈਲਾਕੰਦੀ-788162
(ਆਸਾਮ)
+91 9395726158
डोली शाह
निकट- पी एच ई
पोस्ट- सुल्तानी छोरा
जिला- हैलाकंदी
असम -788162
मोबाइल -9395726158